November 25, 2024
India Rejects Climate Finance Deal COP 29  Baku COP 29 | Dilip Kumar | StudyIQ IAS Hindi
 #Finance

India Rejects Climate Finance Deal COP 29 Baku COP 29 | Dilip Kumar | StudyIQ IAS Hindi #Finance


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दोस्तों कॉप 29 की बैठक का समापन हो चुका है कॉप 29 के बारे में शायद आपने सुना होगा पढ़ा होगा खूब आजकल चर्चा में रहा है यह

कॉप 29 का मतलब होता है कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज 29 यानी कि 29 वं बैठक का आयोजन कहां किया गया तो अजरबैजान एक यूरोपीय देश है

वहीं पर उसकी राज धानी बाकू में इसका आयोजन किया गया था और खूब हो हल्ला भी मचा खूब इसको लेकर के वाद विवाद की स्थितियां

भी सामने आई अलग-अलग मुद्दे को लेकर के विकसित देश विकासशील देशों के बीच में तनातनी की स्थिति भी देखी गई और इन सभी

गतिविधियों के बीच में अब जाकर के जो जलवायु वित्तन को लेकर के एक सहमति है उसे दे दी गई है और सबसे बड़ी बात यह है कि इस

सहमति को लेकर के भारत सहित कई सारे देशों ने अपनी नाराजगी जताई है इन्होंने सीधे-सीधे इस सहमति को लेकर के यह कहा है कि

आपने जितनी राशि देने का वादा किया है वह बहुत ही कम है इतनी राशि में तो जो हमारा एक उद्देश्य था कि हम और बेहतर तरीके

से कार्बन उत्सर्जन को कम करने की कोशिश करेंगे और बेहतर तरीके से हम जलवायु परिवर्तन से जूझने के मद्देनजर हम इसका

सदुपयोग करेंगे बड़े पैमाने पर हम इस जलवायु वित्तीय का इस्तेमाल करेंगे वह तो धरा का धरा ही रह जाएगा कारण इसका क्या

है क्यों भारत और विकासशील देशों के द्वारा या फिर अल्प विकसित देशों के द्वारा यह बातें कही जा रही हैं क्यों भारत के

द्वारा आज इस जलवायु वित्तन को लेकर के सबसे बड़ा विरोध जताया गया है और बाकी कई सारे देशों के द्वारा भारत का समर्थन

भी किया गया है आखिर क्या जलवायु वित्त से संबंधित परिपेक्ष है क्या इससे संबंधित मकसद है इसके बारे में आज की चर्चा

में हम लोग विस्तार से समझेंगे सामने मैंने दो महत्त्वपूर्ण खबरों को मेंशन किया हुआ है जहां पहली खबर के अंतर्गत आप

देख पा रहे होंगे कि भारत के द्वारा इस कांटेक्ट में जो बातें कही गई हैं सीधे-सीधे यह बता रहा है कि जो जलवायु वित्तन की

बात कही गई है जितनी राशि देने की बात कही गई है विकसित देशों के द्वारा वह एक प्रकार का ऑप्टिकल इल्यूजन है दृष्टि

भ्रम है इससे ज्यादा कुछ नहीं यानी कि यह एक प्रकार का केवल और केवल एक दिखावा है वहीं दूसरी तरफ जो विकासशील देश हैं

इनके द्वारा स्पष्ट तौर पर जो जलवायु वित्तन को लेकर के जिस राशि की बात कही गई है 300 बिलियन डॉलर इसी के संदर्भ में जो

दूसरी खबर है इसमें मेंशन किया जा रहा है कि विकासशील देशों ने इस 300 बिलियन डॉलर को बहुत ही कम कहा है कहा कि भाई इतना से

कैसे काम चलेगा है ना और इसी कांटेक्ट में आज की चर्चा में दोस्तों हम लोग विस्तार से बात चित करेंगे कि आखिर यह पूरा का

पूरा मामला कहता क्या है किस तरीके से आपको इस विषय को समझने की जरूरत है सामने आप एक तस्वीर देख रहे हैं जिसमें जो

ग्लोबल साउथ है यानी वैश्विक दक्षिण के जो प्रतिनिधि हैं जो उसके पैरोकार हैं समर्थक हैं उनके द्वारा डिमांड की जा

रही है लगातार लंबे समय से कि हमें और बेहतर से बेहतर सुविधा दीजिए जलवायु वित्तन के माध्यम से और हमें धनराशि दीजिए

ताकि हम जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौती का सामना कर सके हम इससे निपटने की ओर आगे कदम उठा सके तो ये सभी जो पक्ष है

दोस्तों यहां पर हम लोग डिस्कस करेंगे पहली जो खबर है इसमें हम लोग यह देख रहे हैं कि 300 बिलियन डॉलर के जलवायु वित्तन को

मंजूरी दी गई है यह विकसित देशों के द्वारा कहा गया है कि भैया हम आपको 300 बिलियन डॉलर देंगे गेटिंग इट अच्छा अब यहां पर

सवाल ये उठता है कि आखिर इसका विरोध क्यों किया जा रहा है क्यों इसका विरोध किया जा रहा है देखो यहां पर ध्यान रखना कि जब

विकसित देशों के द्वारा कहा गया कि देखिए हम आपको 235 तक प्रति वर्ष के हिसाब से 300 बिलियन डॉलर देंगे तो फिर कई सारे देशों

ने यह कहना शुरू कर दिया कि यह जो आप राशि दे रहे हैं यह तो इतना अधिक कम है कि इससे हमारा कुछ भी होने वाला नहीं है है ना

और यह कहा गया कि कम से कम 500 बिलियन डॉलर की राशि देनी चाहिए थी विकसित देशों को 500 बिलियन डॉलर और भारत सहित कई सारे

देशों के द्वारा तो यहां तक कहा गया कि भई हमें 1.3 ट्रिलियन डॉलर की राशि आप देते तब जाकर के हम इस चुनौती से निपटने में

बेहतर से बेहतर प्रयास कर पाते आ रही है बात समझ में 1.3 ट्रिलियन डॉलर की अपेक्षा इन देशों के द्वारा की गई और इसमें जो भी

देश शामिल है जैसे कि भारत खुद वैश्विक दक्षिण का अगुआ माना जाता है इसने यह बातें कही कि भाई हम इस पूरे जलवायु वित्तन

की जो राशि है इसको हम नामंजूर करते हैं यह बिल्कुल गलत है ऐसा एकदम नहीं किया जाना चाहिए था भारत ने तो नाराजगी इस बात

पर भी जताई है कि भारत को बोलने तक नहीं दिया गया भारत को अपना पक्ष तक नहीं रखने दिया गया इस सम्मेलन के दौरान में जब इस

वित्त जलवायु पर सहमति जताई जा रही थी तो गेटिंग इट और नॉट तो यह बातें यहां पर निकलकर सामने आ रही है दोस्तों इसके

अलावा जो एसोसिएशन ऑफ स्मॉल आइलैंड स्टेट्स है ए ओ एस आई एस उसके द्वारा भी विरोध जताया गया है है ना इस एसोसिएशन ऑफ

स्मॉल आइलैंड स्टेट्स के अंतर्गत दोस्तों कई सारे छोटे-छोटे द्वीप पूरे दुनिया भर में जहां भी यह द्वीप स्थित है उनके

द्वारा भी आपत्ति जताई गई है इसके अलावा जो लाइक माइंडेड है ना लाइक माइंडेड डेवलपिंग कंट्रीज है एल एमडीसी इनको

शॉर्ट फॉर्म में कहा जाता है आप चाहे तो नोट कर लीजिएगा लाइक माइंडेड डेवलपिंग कंट्रीज यानी कि एक जैसा विचार एक जैसी

सोच रखने वाले जो विकासशील देश हैं जिसमें भारत खुद शामिल है इंडोनेशिया जैसे देश शामिल है अ आर्मेनिया जैसे देश

शामिल हैं इन सभी के द्वारा यह बातें कही गई हैं कि जो जलवायु वित्तन की राशि तय की गई है वह बिल्कुल सही नहीं है वह

हमारे अनुकूल एकदम नहीं है हमें इससे कुछ भी सहायता नहीं मिल सकती है गेटिंग इट और यह एक तरीके से हमारा अपमान है यह

बातें इन सभी के द्वारा कही गई है आ रही है बात समझ में इसके अलावा जो लीस्ट डेवलपिंग कंट्रीज है एलडीसी है ना सभी का मैं

शॉर्ट फॉर्म यहां पर लिख रहा हूं एलडीसी का मतलब हुआ लीस्ट डेवलपिंग कंट्रीज यानी कि अल्प विकसित देश इनके द्वारा भी

विरोध किया गया है और उनके द्वारा यह कहा गया है कि आपने हमसे तो मशविरा ही नहीं किया हमें जो जरूरत थी हमें जितनी जरूरत

थी वह आपने हमसे पूछा भी नहीं तो ऐसे में कैसे काम चलेगा हा भाई आप चाह रहे हैं विकसित देश चाह रहे हैं कि हम विकासशील

देशों को सहायता करें वित्तीय सहायता करें ताकि जलवायु परिवर्तन से जो वो जूझ रहे हैं उस समस्या से उनको हम बाहर

निकालने में उनकी मदद करें तो आप हमारी डिमांड को भी तो सुनिए ऐसे कैसे काम चलेगा कि आप हमसे बिना मशविरा किए ही और जो

आपके मन में आया जितना आपके मन में आया वह आपने दे दिया गेटिंग इट र नॉट तो यहां पर इन सभी के द्वारा ये विरोध किया गया है

लिस्ट डेवलपिंग कंट्रीज भारत सहित और भी जो कई सारे देश है ओ एस ए ओ एस आई एस यानी कि एसोसिएशन ऑफ स्मॉल आइलैंड स्टेट्स

के बारे में मैंने आपको बताया जिसमें पनामा जैसे देश शामिल हैं है ना जो सिंगापुर जैसा देश है वो शामिल है कई सारे

बेलीज सूरीनाम गुयाना जैसे देश शामिल हैं इन सभी के द्वारा पनामा जैसे देश शामिल हैं है ना इन सभी के द्वारा विरोध किया

गया है आपको पता है पनामा जैसा देश विश्व में पहला ऐसा देश है जिसने क्लाइमेट चेंज के कारण जिसने जलवायु परिवर्तन जैसी

स्थिति के कारण अपने एक जनजातीय समुदाय को एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करने की कोशिश की है ना तो कितनी बड़ी बात है इन

द्वीपीय देशों को लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है दोस्तों ध्यान रखिएगा कि यह द्वीपीय देश इसलिए ज्यादा

चिंतित है क्योंकि जलवायु परिवर्तन वैश्विक तापन के कारण जो समुद्री जल स्तर है उसमें लगातार वृद्धि हो रही है जो

समुद्री जल है उसमें अम्लीय की जो मात्रा है वो लगातार बढ़ रही है गेटिंग इट र नॉट तो ये सारी जो चुनौतियां है इनका सबसे

बड़ा जो प्रभाव है इन्हीं देशों पर तो पड़ने वाला है सबसे ज्यादा प्रभाव इन्हीं देशों पर और सबसे पहला प्रभाव इन्हीं

देशों पर पड़ने वाला है इसी कारण से इन सभी के द्वारा यह चिंता जाहिर की जा रही है लेकिन विकसित देशों के द्वारा इस पूरे

मामले में एक तरीके से नजरअंदाज करने वाला रवैया अपनाया गया है गेटिंग इट और नॉट ठीक है जी अच्छा अब थोड़ा सा इसमें आगे

हम लोग बात करें शटल कूटनीति के बाद इस राशि को मंजूरी दी गई है समझने वाली बात तो यह है कि भाई शटल कूटनीति के बाद में यह

जो 300 बिलियन डॉलर की राशि है इसे अप्रूव किया गया शटल कूटनीति का मतलब क्या हुआ भाई आप बैडमिंटन खेलते होंगे तो एक तरफ

से एक व्यक्ति एक प्लेयर शॉट हिट करता होगा शटल को दूसरी तरफ से दूसरा जो प्लेयर है वो हिट करता होगा शटल को यानी कि एक

पाले से दूसरे पाले में दूसरे पाले से पहले पाले में इस तरीके से जो यह शटल है इसको भेजा जाता है कोई इसमें अंतिम निर्णय

लेने की स्थिति में नहीं होता है कोई नेतृत्व करने की स्थिति में नहीं होता है और एक तरीके से इसी के कारण जो देरी है वह

भी देखी गई है है ना तो यहां पर इस भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है इसके अलावा बाकू टू बेलेम टू 1.3t रोड मैप को भी मंजूरी

दी गई है यह ध्यान रखिएगा बाकू जो कि अजरबैजान की राजधानी है जहां पर यह अभी कॉप 29 सम्मेलन का आयोजन किया गया इसके बाद

अगले साल यानी कि 2025 में ब्राजील के बेलेम में कॉप 30 सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा तो इसी के कंटेक्सकंपैट ध्यान रखिएगा

कि 1.3 ट्रिलियन डॉलर की बात यहां पर कही गई है लेकिन इस 1.3 ट्रिलियन डॉलर की पूर्ति करने में कई सारे जो स्टेकहोल्डर्स

हैं वह भी पार्टिसिपेट करेंगे केवल विकसित देश ही इसमें पार्टिसिपेट नहीं करने वाले विकसित देशों के द्वारा तो बोल ही

दिया गया कि हम 300 बिलियन डॉलर से ज्यादा दे ही नहीं सकते हैं हमारे यहां पर बहुत अधिक दिक्कतें चल रही हैं राजनीतिक

दबाव है राजकोषीय दबाव है यह सब बहाना उन लोगों ने कर दिया है है ना और सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि अमेरिका जैसे देश

यूरोपियन यूनियन के देश इन सभी के द्वारा इस मामले में एस सच कुछ भी पॉजिटिव स्टेप नहीं उठाया गया है गेटिंग इट र नॉट तो

यहां पर इस बात को ध्यान में रखिएगा इसके अलावा इसमें एनसी क्यूज को महत्व दिया गया है एनसी कूजी का मतलब क्या होता है

और ये जो 300 बिलियन डॉलर की बात हम लोग बार-बार कर रहे हैं वो दरअसल इसी के अंतर्गत शामिल है इन एनसी क्यूज को थोड़ा सा हम

लोग समझ लें इसका मतलब होता है दोस्तों न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल यानी कि इस गोल में क्या कुछ बातें कही गई हैं

पहली बात कही गई है कि इसे जो प्लेनरी सेशन यानी कि पूर्ण सत्र का आयोजन किया जाएगा इस पूरे मामले पर जो अंतिम सहमति

मिलेगी वहां पर इसे प्रस्तुत किया जाएगा और नए वार्षिक वित्त का लक्ष्य इसके अंतर्गत रखा गया है जिसमें 300 बिलियन डॉलर

को लेकर के जो फाइनल अप्रूवल है वो इसके माध्यम से मिल रहा है साथ ही इसका जो उद्देश्य है उसमें ये कहा जा रहा है कि

जीएचजी यानी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन करने वाले जो देश हैं उनको रियायत मिल सकती है राहत मिल सकती है उत्सर्जन में कमी

लाई जा सकती है इस वित्तन के माध्यम से और जो इसका प्रभाव है उसे भी कम किया जा सकता है साथ ही वित्तीय सहायता तो मिल ही

रही है इसके अलावा स्वक्ष ऊर्जा के क्षेत्र में भी और अधिक प्रोत्साहन मिल सकता है जलवायु अनुकूल अव संरचना के विकास

में उनके निर्माण में भी और अधिक प्रोत्साहन मिल सकता है तो यह सारी बातें यहां पर एनसी क्यूज के कंटेक्सकंपैट ने

लगातार अपने स्तर पर कई सारे समूहों से पीछे हटने की कोशिश की थी अपने पहले कार्यकाल के दौरान में अब यह देखने वाली बात

होगी कि एट प्रेजेंट जो कॉप 29 की बैठक में बातें कही गई हैं जलवायु वित्तन को लेकर के जिस बात पर जिस पक्ष को लेकर के जिस

राशि को लेकर के अंततः सहमति जताई गई है इसमें डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा क्या कुछ नीतियां अपनाई जाती हैं क्या तो इस

मामले में अपना पक्ष और आगे बेहतर तरीके से रखेंगे या फिर वह विथड्रावल को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है अभी जिस

हिसाब से जलवायु परिवर्तन वैश्विक तापन चरम मौसमी घटनाएं कहीं पर चक्रवात आ रहा है कहीं पर सूखा पड़ रहा है कोई

द्वीपीय देश जो है पे जल के लिए लालायित हो रहा है पेजन उसको नहीं मिल पा रहा है अनाज की कमी हो रही है तो ऐसे में जो यह

स्टेप्स है यह स्टेप्स कितने अधिक फ्रूटफुल होंगे यह तो आगे आने वाला समय ही बताएगा हालांकि अपेक्षा यह की जा रही है कि

इस राशि के इस्तेमाल से जलवायु परिवर्तन से निपटने में एक हद तक मदद मिलेगी जो अ जो ये चुनौतियां हैं इन चुनौतियों से

निपटने में मदद मिलेगी और साथ ही साथ रोजगार को को भी बढ़ावा देने में एक सपोर्ट मिल सकेगा समर्थन मिल सकेगा अब यह आगे

देखने वाली बात होगी कि विकासशील देशों और अल्प विकसित देशों के द्वारा जो डिमांड की जा रही है इस डिमांड को लेकर के

बाकी स्तर पर जो यूएनएफ ट्रिपल सी है यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज है इसके द्वारा क्या अपना

अभिमत जताया जाता है क्या इससे संबंधित और सकारात्मक पहले की जाती हैं ये आगे आने वाले समय में पता चलेगा आज हम लोग इस

चर्चा को यहीं पर विराम देते हैं इसके जरिए मैंने आपको यह बताने की कोशिश की कि भारत के द्वारा और अन्य देशों के द्वारा

क्यों विरोध किया गया एनसी क्यूज का मतलब क्या है इसका ऑब्जेक्टिव क्या है और जो जलवायु वित्तीय से संबंधित एक एंगल है

इसमें क्या कुछ बातें आपको ध्यान में रखने की आवश्यकता है जाते-जाते मैं आपको एक और महत्त्वपूर्ण सूचना दे देता हूं कि

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