December 4, 2024
Why Is COP29 Climate Finance Sparking Global Disputes? | NCQG | CBAM | Indepth | UPSC | Drishti IAS
 #Finance

Why Is COP29 Climate Finance Sparking Global Disputes? | NCQG | CBAM | Indepth | UPSC | Drishti IAS #Finance


[संगीत] नमस्कार मेरा नाम है अमिताभ और दृष्टि आईएस की इस नई वीडियो में स्वागत है आपका दुनिया जलवायु परिवर्तन के

गंभीर संकट का सामना कर रही है बढ़ते तापमान पिघलते ग्लेशियर बदलते मौसम चक्र सिर्फ संकेत नहीं बल्कि एक चेतावनी है

आज जहां दुनिया को एकजुट करने की आवश्यकता है और सबको एक साथ मिलकर इस दिशा में प्रयास करने की जरूरत है वहीं इस मौके पर

वित्तीय जिम्मेदारियों को लेकर विकसित और विकासशील देश दो धड़ में बटे हुए नजर आ रहे हैं अब ऐसे में दो धड़ में देशों

का बटना एक चिंता की बात है और इसके केंद्र में क्या है तो इसके केंद्र में है क्लाइमेट फाइनेंस अर्थात कॉप 29 की बैठक

में जब सभी देश इकट्ठे हुए तो ग्लोबल साउथ के लिए विकसित देशों से यह अपेक्षा की जा रही थी कि जो राशि उनको जरूरत थी

क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए वह राशि वह उम्मीद कुछ ज्यादा थी लेकिन जो विकसित देश हैं विकासशील देशों को इस उम्मीद

से कहीं कम राशि दे रहे थे इस बात को लेकर दोनों देशों के बीच दोनों ड़ के बीच एक टकरा हट की स्थिति बनी हुई नजर आ रही है

तो आज के इस वीडियो की माध्यम से हम समझेंगे कि वास्तव में भारत के द्वारा इस राशि को ठुकराया गया काफी मजबूती से

ठुकराया गया तो भारत ने भी इसमें अग्रणी भूमिका क्यों निभाई और वो कौन से प्रमुख मुद्दे हैं जिस पर लेकर इन दोनों धड़

में विभाजन नजर आ रहा है तो आज के वीडियो में हम इसी की बात करेंगे शुरू करते हैं आज के इस वीडियो को सबसे पहले जलवायु

वित्त और विवाद को लेकर पूरी स्थिति क्या है इसको समझेंगे लेकिन इससे पहले आपको बता दें कि अब यूपीएससी का हब मुखर्जी

नगर नहीं नोएडा में होगा क्योंकि दृष्टि आईएस मुखर्जी नगर की क्लासेस अब नोएडा में शिफ्ट हो चुकी है तो इसका एड्रेस

क्या है तो c 171/1 ब्लॉक ए सेक्टर 15 नोएडा यूपी और इसका नियरेस्ट मेट्रो स्टेशन जो है वह है आपका नोएडा सेक्टर 15 साथ ही इसके

संबंध में अगर विस्तृत जानकारी आप चाहते हैं तो वो विस्तृत जानकारी आपको मिलेगी इस दिए गए नंबर पर तो ये नंबर जरूर नोट

कर ले 9311 40640 इस पर आप विस्तार से जानकारी ले सकते हैं तो यूपीएससी की तैयारी के लिए मुखर्जी नगर नहीं डा चले साथ ही साथ

यहां पर जो नए बैच है उसकी भी सूचना आपको दे दें हिंदी माध्यम और अंग्रेजी माध्यम दोनों ही बैच प्रारंभ हो रहे हैं तो

हिंदी माध्यम का जो बैच है वो 9 दिसंबर वर्ष शुरू हो रहा है सुबह 11:30 बजे वहीं पर इंग्लिश मीडियम का जो बैच है वो शुरू हो

रहा है आपका 12 दिसंबर से शाम को 6:00 बजे से इसी इसके अलावा आप देखें लखनऊ में हिंदी और अंग्रेजी दोनों माध्यम के जो बैच हैं

उसकी शुरुआत 29 नवंबर से हो रही है सुबह 11:30 बजे से चलिए वीडियो की शुरुआत करते हैं सबसे पहले बात करते हैं चर्चा के

बिंदुओं की तो चर्चा के बिंदुओं के अंतर्गत सबर की बात हमने की चर्चा में क्यों है इस बात को हम शुरू में इंट्रोडक्शन

में ही आपको बताए कि दोनों धड़ जो विकसित और विकासशील देश विकासशील देशों के लिए जो एक विशेष टर्म यूज किया जा रहा है

ग्लोबल साउथ तो इनके लिए जो धन आवंटन है उस धन आवंटन की राशि काफी कम है विकसित देशों से उम्मीद काफी ज्यादा थी इसकी वजह

से दो धड़े नजर आए इसमें भारत ने भी अपना विरोध दर्ज किया तो इसकी वजह से यह चर्चा में आया कॉप 29 की ये जो बैठक हुई है वह

क्यों महत्त्वपूर्ण है इस दृष्टिकोण से इसको क्यों देखा जा रहा था उसको भी हम देखेंगे विकासशील देश और विकसित देश

दोनों का पक्ष हम जानेंगे दोनों के अपने-अपने क्या पक्ष हैं इसके अलावा क्या हुआ कोई ठोस समझौता इसके विषय में भी हम

बात करेंगे साथ ही साथ अभ्यास प्रश्न जिसकी जिम्मेदारी हमेशा की तरह हम आप पर छोड़ते हैं वो आप पर छोड़ेंगे और आपसे

जवाब की अपेक्षा रखेंगे सामान्य अध्ययन के दो और तीन दोनों ही खंड से जोड़कर इसको आप देख सकते हैं बात खबर की करते हैं

व्हाई इज देयर अ रो ओवर क्लाइमेट फाइनेंस अब देखिए क्लाइमेट फाइनेंस की जहां तक बात की जा रही है वह इसीलिए की जा रही है

कि जो भी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है जिसका परिणाम ग्लोबल वार्मिंग जलवायु परिवर्तन के रूप में हमको

दिखाई देता है उससे मिलकर निपटने के लिए जो विकसित देश है और विकासशील देश है वो एक साथ कदम मिलाकर चले और इसके बीच में

कहीं भी फाइनेंस बाधा ना आए इसके लिए विकसित देशों को थोड़ी जिम्मेदारी ज्यादा लेनी होगी और विकासशील देशों की मदद

करनी होगी इसीलिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की बात की जाती है टा चाहे वह टेक्निकली रूप से विकसित देशों द्वारा

विकासशील देशों की मदद करने की बात हो उत्सर्जन में ताकि कमी की जा सके और इसके लिए जो सबसे जरूरी चीज है वह है जलवायु

वित्त क्लाइमेट फाइनेंस जिसकी रूपरेखा पहले से तैयार थी और उसको लेकर विकासशील देशों को सहायता के के लिए जो निधि का

वितरण होगा अर्थात जो फाइनेंस किया जाएगा अब उसमें राशि क्या होगी इस बात को लेकर थोड़ी सी असहमति है और इसी कारण इसी

लंबित मुद्दे के कारण यह जो बैठक 22 नवंबर को समाप्त होने वाली थी उसमें हमको वृद्धि भी उसकी समय सीमा भी खींचती हुई हमको

नजर आई तो हम यह मुद्दा मेन केंद्र में है आप देखिए इसमें क्या होना था इसमें जो विकसित देश और विकासशील देश हैं उसमें

दोनों के अपने-अपने पक्ष है उसको हम समझते हैं देखिए विकसित देशों की अगर बात करें तो वो जो जिम्मेदारी उनके ऊपर दी जा

रही थी विकासशील देश जो उम्मीद उनसे कर रहे थे उससे कम राशि वह देने को तैयार है तो मोटा मोटी यह है कि 1.3 ट्रिलियन डॉलर

जो है वह उम्मीद की जा रही थी विकासशील देशों के द्वारा कि वह इतनी राशि प्रतिवर्ष प्राप्त करेंगे और वही विकसित देशों

की अगर बात करें तो उनका यह कहना है कि हम 250 से 300 बिलियन डॉलर अमेरिकी डॉलर तक हम राशि प्रतिवर्ष देने के लिए तैयार हैं

हम निसंदेह या मानते हैं कि हमारी हमा हमें नेतृत्व करना चाहिए आवश्यकताएं बढ़ ही है लेकिन हम यह जो उम्मीद है ये कहीं

ज्यादा है तो दोनों को लेकर दो धड़े यहां पर बटे हुए नजर आते हैं अब एक-एक करके जरा सा हम ध्यान देंगे सबसे पहले देखते

हैं कॉप 29 को क्यों महत्त्वपूर्ण माना जा रहा था तो देखिए कॉप 29 जो है दरअसल कॉप की अगर बात करें तो संयुक्त राष्ट्र का

एक प्रमुख मंच है और जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक कदम उठाने पर निर्णय यहां पर लिया जाता है तो ये एक महत्त्वपूर्ण बैठक

है सबसे पहले तो इसीलिए इंपॉर्टेंट है और कॉप 29 में इस मुद्दे पर चर्चा होनी थी इसलिए यह और महत्त्वपूर्ण होता है साथ ही

साथ कार्बन क्रेडिट को लेकर जो बात की जा रही थी कार्बन बाजार की बात की जा रही थी उसको लेकर भी यहां पर निर्णय होना था

तो इसलिए कॉप 29 को बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण माना जा रहा था अब कॉप उत्सर्जन को कम करना इसमें लक्ष्य था ही जो कार्बन

उत्सर्जन है क्षमा करिएगा उसको कम करना तो लक्ष्य था ही साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए

सामूहिक प्रयास को कैसे और पुख्ता बनाया जाए साथ ही विकासशील देशों की मदद के लिए जलवायु वित्त अर्थात क्लाइमेट

फाइनेंस को कैसे और मजबूत किया जाए ज्यादा से ज्यादा आवंटित किया जाए इसलिए से हम कह सकते हैं कि जो विकासशील देश थे व

बहुत ही उम्मीद की नजर से देख रहे थे कॉप 29 को तो इसलिए यह काफी महत्त्वपूर्ण था अब देखिए क्लाइमेट फाइनेंस को जानने से

पहले थोड़ा सा इसको पीछे से देखते हैं थोड़ा सा और पहले हम चलते हैं तो बात हम करेंगे सबसे पहले 1900 92 में जब यूएनएफसीसीसी

के तहत अर्थात संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क जो समझौता हुआ था उसके तहत ये तय हुआ कि जो विकसित देश हैं

उनके द्वारा विकासशील देशों को वित्तीय सहायता देने के लिए एक प्रॉमिस किया गया एक वादा किया गया तो शुरुआत इसकी हम

देख रहे हैं 1992 से ही इसकी न्यू पड़ चुकी थी एक बीजारोपण हो चुका था 2009 से 2020 तक हर साल यह तय हुआ कि 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर

जो है वो जुटाए जाएंगे यह लक्ष्य रखा गया था और विकसित देश इस लक्ष्य को 2020 तक इस लक्ष्य को वैसे तो ये रखा गया लेकिन इसको

2020 तक पूरा नहीं कर पाए यह 2022 में जाक हमको दिखाई देता है 115 बिलियन डॉलर जो है 20222 ईयर में इकट्ठा हो पाया था तो यह राशि कहीं

ना कहीं जो लक्ष्य निर्धारित किया गया था उससे उस समय सीमा में प्राप्त नहीं हुआ 2022 में जाकर प्राप्त हुआ इस बीच जो

विकसित देश थे उनसे अपेक्षाएं भी बढ़ी और महंगाई को देखते हुए विकासशील देशों का यह कहना है कि अब इस राशि को बढ़ना

चाहिए क्योंकि जरूरतें उस हिसाब से बढ़ी हैं अब पेरिस समझौता जब हुआ तो पेरिस समझौता के बाद 2025 से पहले 100 बिलियन डॉलर से

बड़ा एक नया वित्तीय लक्ष्य तय किया जाएगा यह बात यहां पर उठकर सामने आती है उसके पीछे कारण क्या था कारण यह था कि अब तक

जो लक्ष्य था वह समय काफी बीत चुका है अब समय के हिसाब से डिमांड बढ़ी है तो विकासशील देशों की आवश्यकताएं अब ज्यादा है

तो पहरे समझौते में तय हुआ कि 100 बिलियन से बड़ा एक वित्तीय लक्ष्य तय करना यहां पर आवश्यक हो गया है तो उस दिशा में सोचने

की जरूरत है और इसके लिए जो शब्द इस्तेमाल किया गया वो इस्तेमाल किया गया एनसी क्यू जीी अर्थात न्यू कलेक्टिव

क्वांटिफाइड गोल अर्थात ये नया एक गोल तय किया गया जो पिछला गोल था पुराना गोल था उसके बाद एक नए गोल की बात की जाने लगी

क्योंकि यह कहा जा रहा था कि जो विकासशील देश है उनकी आवश्यकताएं अब बढ़ गई है तो बात यहां पर हो गई अब विकासशील देशों की

मांगे क्या है विकासशील देशों की उम्मीदें ज्यादा थी और विकसित देश इसको देने को तैयार नहीं है इसी वजह से विवाद है तो

देखिए विकासशील देशों की मांगों पर एक नजर डालते हैं इसके अंतर्गत आप देखें तो भारत भी शामिल है चीन है और जी 77 देशों का

समूह है यह मानते हैं कि जलवायु वित्त का जो ज्यादा पैसा है जो फाइनेंस करना है उसकी जिम्मेदारी ज्यादा किस पर बनती है

विकसित देशों पर बनती है क्यों क्योंकि विकसित देशों की अगर हिस्ट्री पर आप नजर डालें तो सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन

भी विकसित देशों के द्वारा ही किया गया है इस लिहाज से भी उनकी जिम्मेदारी ज्यादा बनती है साथ-साथ इस वित्त का उपयोग

किन-किन कामों में होना है उस लिहाज से भी इसकी इंपॉर्टेंस बढ़ती है तो वो कौन-कौन से काम है तो एक देखिए एनडीसी एनडीसी

का मतलब कि हर देश ने अपने देश का जो व्यक्तिगत लक्ष्य तय किया था वो है कि राष्ट्रीय स्तर पर हमने जो भी योगदान अपना

निर्धारित किया है मान लीजिए ग्लोबली एक टारगेट तय किया गया तो हर देश का अपना एक राष्ट्रीय योगदान भी तय किया गया हर

देश शैक्षिक लक्ष्य तय किया जिसको 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को उसके माध्यम से कम करना था वही एनडीसी था तो एनडीसी

कोल के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भी इस वित्त का उपयोग किया जाएगा जो विकासशील देश उम्मीद कर रहे थे विकसित देश से

पाने की साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से जुड़े जो मौजूदा खतरे हैं उससे निपटने के लिए भी विकसित देश से जो राशि मिलेगी उससे

विकासशील देश और बेहतर तरीके से निपट सकेंगे साथ ही साथ पहले से हुए जो जलवायु नुकसान है अगर कोई विकासशील देश जलवायु

परिवर्तन के खतरे से उसको अगर कुछ नुकसान हुआ है तो उसकी भरपाई के लिए भी इस फाइनेंस का इस वित्त का इस्तेमाल करेगा तो

इस वजह से भी इसकी इंपॉर्टेंस बढ़ गई अगर सभी देश अपने एनडीसी को पूरा भी कर ले अब एक नई कंडीशन भी इसको इसकी इंपॉर्टेंस

को बया करती है अगर मान लीजिए सभी देश अपने-अपने राष्ट्रीय स्तर पर जो लक्ष्य तय किए हैं जो जिम्मेदारी तय किए हैं अगर

उसको पूरा भी कर ले तो कुल उत्सर्जन में 2 प्र की कटौती हो हो पाती लेकिन जो वर्तमान स्थिति है उस वर्तमान स्थिति को जब

आप देखेंगे तो यह कमी होना तो दूर की बात है आप जब 2024 में कार्बन उत्सर्जन को देखेंगे 2023 की तुलना में तो 8 पर बढ़ने की

संभावना है तो ऐसी दशा में जब सारी कंडीशन आइडियल बनी रहती आदर्श बनी रहती तब तो 2 प्र की कटौती होती कुल उत्सर्जन में

लेकिन जहां इसके ठीक उलट उसके उत्सर्जन में बढ़ोतरी की संभावना है तो ऐसी दिशा में इस फाइनेंस का महत्व इंपॉर्टेंस और

बढ़ जाता है तो यह सब बातें हैं जिसकी वजह से विकास विकासशील देश यह चाहते हैं कि विकसित देश उनकी मदद करें ताकि जलवायु

परिवर्तन से यह छोटे या कम विकसित या गरीब देश भी लड़ सकें साथ ही साथ अपने उत्सर्जन को ये भी कम कर सके और मौजूदा जो

खतरे हैं उससे निपटने के लिए तैयार हो सके यह पक्ष है विकासशील देशों का विकसित देशों का पक्ष क्या है वो उनका क्या

कहना है तो देखिए जो विकसित देश हैं वो यह मानते हैं कि जलवायु वित्त में सभी देशों का योगदान होना चाहिए नो डाउट वो यह

कहते हैं कि उनका खुद का योगदान सीमित है और साथ-साथ विविध स्रोतों से इस योगदान को हम इसकी भरपाई कर सकते हैं सिर्फ

केवल विकसित देश अपने पर इसकी जिम्मेदारी लेने से कहीं ना कहीं कतरा रहे हैं उनका लक्ष्य यह है कि जो विकासशील देशों की

अपेक्षा है वह अपेक्षा काफी ज्यादा है तो उनका यह कहना है कि यूरोपीय संघ के नेतृत्व में जो विकसित देश है वह यह मानते

हैं कि यह जो भी डिमांड है वह बहुत ज्यादा अव्यावहारिक है बहुत ज्यादा यह ज्यादा है मतलब उम्मीद से ज्यादा है और

साथ-साथ अव्यावहारिक है व्यवहारिक नहीं है इसको पूरा इतनी आसानी से नहीं किया जा सकता दरअसल इसमें इनका ये कहना है कि

सभी पक्षों को मिलकर एक साथ इसका सलूशन निकालना पड़ेगा उनका ये कहना है कि जो 1.3 ट्रिलियन प्रति वर्ष तक जलवायु वित्त को

बढ़ाने पर काम करने की बात कही जा रही है 2035 तक उस पर सबको मिलकर काम करना होगा और जिस तरह से विकासशील देश सोच रहे हैं उस

तरह से इसका सलूशन नहीं निकल सकता है विकसित देश ये मान रहे हैं कि खुद के लिए 2035 तक 250 से 300 बिलियन प्रति वर्ष का लक्ष्य हम

तय करते हैं लेकिन विकासशील देश कह रहे हैं कि 200 250 से लेकर 300 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष का लक्ष्य काफी कम है उनकी डिमांड

क्या है 1.3 ट्रिलियन प्रतिवर्ष 2035 तक तो साथ ही साथ विकसित देश यह कह रहे हैं कि इस वित्त का स्रोत क्या होगा तो विकसित

देश कह रहे हैं कि टोटल विकसित देशों के ऊपर जिम्मेदारी डाल देना कि वही फाइनेंस करेंगे डायरेक्टली यह सही नहीं है

इसका स्रोत कई स्रोत हो सकते हैं जैसे सार्वजनिक और निजी वित्त दोनों का इस्तेमाल हो सकता है साथ ही साथ विपक्षी रूप से

एक देश दूसरे देश की सहायता कर या बहुपक्षीय कई देश या संगठन आपस में मिलकर इस राशि को जुटाए या कुछ वैकल्पिक स्रोत

जिसमें कि कार्बन टैक्स या अन्य वित्ती साधन भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं तो वित्त के स्रोत को लेकर विकसित देशों का

कहना है कि डिफरेंट डिफरेंट माध्यम से इसको जुटाया जा सकता है साथ ही साथ जो नेतृत्व की जिम्मेदारी को विकसित देशों ने

स्वीकार किया है वह कहते हैं कि हम इस रिस्पांसिबिलिटी को मानते हैं व मानते हैं कि 2030 तक विकासशील देशों की सहायता के

लिए 700 बिलियन डॉलर तो चाहिए ही चाहिए हालांकि जो 1.3 ट्रिलियन डॉलर है उस राशि को बहुत ज्यादा उम्मीद से ज्यादा बताते हैं

लेकिन उनका यह मानना है कि 2030 तक 700 बिलियन डॉलर की तो जरूरत है इसको जुटाने के लिए हम अपनी जिम्मेदारी भी लेते हैं साथ ही

साथ विकसित देश ये कहते हैं कि जलवायु वित्त में हमें नेतृत्व करना चाहिए लेकिन हमारी जिम्मेदारी इतनी ज्यादा नहीं है

जिम्मेदारी साझा होनी चाहिए और डिफरेंट डिफरेंट सोर्स से कलेक्ट की जानी चाहिए तभी इसका सलूशन निकल सकता है इस बात को

लेकर जो विकासशील देश हैं वो खासे नाराज हैं सब भारत ने भी इसको ठुकरा दिया भारत ने भी कहा कि 300 बिलियन डॉलर की जो बात की

जा रही है हम उसको स्वीकार नहीं करते हैं मुखर रूप से इसका विरोध करते हैं तो कुल मिलाकर यहां पर ये गतिरोध देखने को

मिला अब देखिए कॉप 29 में किए गए कुछ ठोस समझौते हैं जिसकी वजह से इसको याद भी किया जाएगा ऐसा नहीं है कि सिर्फ गतिरोध के

लिए याद किया जाएगा तो देखिए कॉप 29 में कुछ ठोस कदम उठाए गए जिसमें सबसे पहला और ऐतिहासिक कार्बन बाजार का गठन हुआ ये एक

इंपॉर्टेंट चीज है जिसके बारे में अलग से एक वीडियो बनाया जा चुका है फिर भी आप इसको याद रखें कि कार्बन बाजार का गठन

इसको ऐतिहासिक बनाता है साथ ही साथ सीबीएम पर चर्चा हुई सीबीएम क्या है तो देखिए बेसिक देश जो है जिसमें ब्राजील

दक्षिण अफ्रीका भारत चीन इसके द्वारा मांग पर चीन ने एक याचिका दायर की इस सभी देशों का यह कहना था और इन देशों की तरफ से

चीन के द्वारा यह याचिका दायर की गई इसमें यह कहा गया कि जो सीबीएम है इसके माध्यम से एक तरफा व्यापार जो लगाया जा रहा है

एक तरफा व्यापार प्रतिबंध लगाया जा रहा है उस पर हम लोग चर्चा करना चाहते हैं सीबीएम क्या है तो सीबीएम कार्बन बॉर्डर

एडजस्टमेंट मैकेनिज्म है दरअसल यूरोपीय संघ ये कहता है उसने बीएम नामक एक प्रस्ताव रखा जिसमें कि यूरोपीय संघ में अगर

कोई भी आयात की जाएगी चीज कोई भी वस्तु अगर आयात की जा रही है और अगर उस वस्तु से ऐसा लगता है कि कार्बन उत्सर्जन के जो

मानक है उसको वह पूरा नहीं कर रहा है अर्थात उससे कार्बन उत्सर्जन होने की संभावना है तो यूरोपीय संघ इसके माध्यम से

कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म के माध्यम से उस पर टैक्स लगा सकता है तो यह कहना है जो बेसिक देशों की आपत्ति है

वो कह रहे हैं कि ये एक तरफा व्यापार प्रतिबंध है हम इस पर चर्चा करना चाहते हैं तो यह भी एक प्रमुख मुद्दा था सीबीएम पर

चर्चा इसको लेकर भी कुछ विरोध यहां से पर दर्ज किया गया हालांकि यह कहना है कि यह व्यवस्था 2026 से लागू होगी अभी ये किस

रूप में लागू है तो संक्रमण काल में है संक्रमण काल का मतलब कि इसके जितने भी प्रोविजन बनाए गए हैं सारे के सारे पूरी

तरह से लागू नहीं होंगे कुछ-कुछ प्रोविजंस इसके लागू होते रहेंगे और 2026 तक जाकर यह व्यवस्था पूरी तरह से लागू कर दी

जाएगी यूरोपीय संघ के द्वारा कि उनके यहां कोई भी ऐसी वस्तु आती है जिससे कि कार्बन उत्सर्जन होने की संभावना है तो

यूरोपीय संघ उस पर टैक्स लगा सकता है तो यह एक तो बात इस पे हुई चर्चा की बात इसलिए भी इंपॉर्टेंट है दूसरा यह याद रखिएगा

कि कॉप 29 के पहले दिन ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा निगरानी किए गया कार्बन बाजार पर एक समझौता हुआ जो कि इसको हिस्टोरिकल

बनाता है और इस बाजार में यह बात कहे गई कि कार्बन क्रेडिट्स का व्यापार अब देश कर सकते हैं जिसमें कि कार्बन क्रेडिटस

का व्यापार करने के साथ-साथ उन देशों को वित्तीय सहायता मिलेगी और पेरिस समझौते की आर्टिकल सिक्स में यह बात पहले से

उल्लेखित है तो इस लिहाज से यह कुछ इंपॉर्टेंट बातें भी थी इस कॉप 29 की चली लगातार बैठकों के बीच तो यह मुख्य रूप से आज का

हमारा विषय था दोनों के विवाद का कारण उम्मीद है आप समझ गए होंगे आज का प्रश्न आपकी जिम्मेदारी के तौर पर आपके सामने हम

छोड़ते हैं जिसका जवाब आपसे अपेक्षित है कमेंट बॉक्स में प्रश्न आपके सामने है कि सीबीएम अर्थात कार्बन बॉर्डर

एडजस्टमेंट मैकेनिज्म पूरी तरह से कब लागू होगा विकल्प आपके सामने है 2024 25 26 या 27 तो उम्मीद है इस प्रश्न का सही और सटीक

जवाब आप जरूर देंगे लड़ते रहे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे डियर व्यूवर्स अपने एग्जाम की तैयारी को और बेहतर करने के

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32 thoughts on “Why Is COP29 Climate Finance Sparking Global Disputes? | NCQG | CBAM | Indepth | UPSC | Drishti IAS #Finance

  1. हमारी तरफ से कॉल पाने के लिये यह फॉर्म भरें:  https://drishti.xyz/Noida-Centre-Hindi 
    हमारी नोएडा शाखा में विज़िट करने के लिये क्लिक करें – लोकेशन:  https://drishti.xyz/Drishti-IAS-Noida 

    प्रश्न- प्रश्न- CBAM (कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म) पूरी तरह से कब लागू होगा?
    a) 2024
    b) 2025
    c) 2026
    d) 2027

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